मामलों में आपत्तियां विक्रेता के पारिवारिक सदस्यों और हिस्सेदारों की ओर से ही दर्ज कराई जाती हैं। अगर आपत्तियां फर्जी हैं और दस्तावेजों में सबकुछ सही पाया जाता है तो खरीदार का नाम राजस्व विभाग के अभिलेखों में दर्ज कर दिया जाता है। प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री कराने के बाद आमतौर पर लोग मान लेते हैं कि काम पूरा हो गया।
और हम उस संपत्ति के मालिक बन गए अगर आप भी कोई प्रॉपर्टी खरीदने के बाद ऐसा ही सोच रहे हैं तो आपकी ये सोच पूरी तरह से गलत है। रजिस्ट्री कराने के बाद एक निश्चित अवधि तक इस रजिस्ट्री के विरोध में आपत्तियां दर्ज कराई जा सकती है।आपत्ति दर्ज कराने वालों में विक्रेता के परिजन और हिस्सेदार शाामिल हो सकते है।
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रजिस्ट्री होने के बाद प्रॉपर्टी के विक्रेता को सूचना भेजी जाती है कि इस संपत्ति का उक्त व्यक्ति के नाम बैनामा किया गया है। यदि इस बारे में आपको कोई आपत्ति है तो उसे दर्ज करा सकते हैं। इस प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि रजिस्ट्री करने वाला व्यक्ति वास्तविक मालिक ही है और उससे किसी के दबाव में तो बैनामा नहीं करा लिया गया।
आपत्ति दर्ज कराने के लिए विभिन्न राज्यों में अलग-अलग अवधि निर्धारित है। अगर विक्रेता को प्रॉपर्टी की पूरी कीमत नहीं मिल पाई है तो वह आपत्ति दर्ज कराकर इसका दाखिल खारिज रुकवा सकता है। इस स्थिति में प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री खारिज हो जाएगी।
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ज्यादातर मामलों में आपत्तियां विक्रेता के पारिवारिक सदस्यों और हिस्सेदारों की ओर ही दर्ज कराई जाती हैं। इसकी प्रमुख वजह गृह क्लेश होती है। कई बार खरीदार रजिस्ट्री के समय विक्रेता को पोस्ट पीडीसी भी दे देता है। जो कि इनके दाखिल खारिज रुकवा दिया जाता है।
इस तरह के मामले भी सामने आए हैं जिनमें विक्रेता ने आपत्ति दर्ज कराकर दाखिल खारिज रुकवा दिया और खरीदार से और पैसा वसूलने के लिए दबाव बना दिया।कार्यालय में इस तरह के सभी मामलों की सूची बनाकर उनका निस्तारण किया जाता है। वाजिब आपत्तियों के मामले में कार्रवाई की जाती है। अगर आपत्तियां फर्जी हैं और दस्तावेजों में सबकुछ सही पाया जाता है तो खरीदार का नाम राजस्व विभाग के अभिलेखों में दर्ज कर दिया जाता है।