विक्रमादित्य और बेताल की क्या थी अंतिम कहानी?

                                      विक्रमादित्य और बेताल की क्या थी अंतिम कहानी?

विक्रम और बेताल की अंतिम कहानी, जो राजा विक्रमादित्य और बेताल के बीच होने वाले संवाद का चरम बिंदु थी, ने एक महत्वपूर्ण मोड़ लिया। इस कहानी में बेताल ने राजा विक्रम को एक जटिल और गूढ़ कथा सुनाई, जो राजा के लिए सबसे कठिन और निर्णायक साबित हुई।

अंतिम कहानी:

एक समय की बात है, काशी राज्य का एक शक्तिशाली और पराक्रमी राजा था। उसके तीन पुत्र थे, जो अपने राज्य और जनता के प्रति बहुत जिम्मेदार थे। राजा ने अपनी एकमात्र पुत्री का विवाह एक योग्य वर से करने का निश्चय किया। लेकिन अचानक, विवाह से कुछ समय पहले ही उसकी पुत्री की मृत्यु हो गई। इस घटना से पूरा राजपरिवार शोक में डूब गया, खासकर तीनों राजकुमार, जो अपनी बहन से अत्यधिक स्नेह करते थे।

तीनों राजकुमार अपनी बहन की मृत्यु से इतने दुखी थे कि उन्होंने अपनी-अपनी तरह से उसे पुनर्जीवित करने का प्रयास किया। पहले राजकुमार ने अपनी बहन की अस्थियाँ लेकर तपस्या की, दूसरे ने अपनी बहन की अस्थियों को सुरक्षित रखने के लिए एक विधि अपनाई, और तीसरे राजकुमार ने एक मंत्र प्राप्त किया जिससे मृत व्यक्ति को पुनः जीवित किया जा सकता था।

पुनर्जीवित करने का प्रश्न:

एक दिन, तीनों राजकुमार अपनी बहन की अस्थियों को एकत्रित कर एक साथ आए और तीसरे राजकुमार के मंत्र से अपनी बहन को पुनर्जीवित कर दिया। उनकी बहन सचमुच फिर से जीवित हो गई और राजकुमार बहुत प्रसन्न हुए।

अब बेताल ने राजा विक्रमादित्य से एक जटिल प्रश्न पूछा: इन तीनों में से सबसे बड़ा श्रेय किसे दिया जाना चाहिए?

1. पहले राजकुमार को, जिसने अस्थियाँ जुटाईं और तपस्या की?

2. दूसरे राजकुमार को, जिसने अस्थियाँ सुरक्षित रखीं?

3. या तीसरे राजकुमार को, जिसने अपनी मंत्रविद्या से बहन को पुनर्जीवित किया?

विक्रमादित्य का उत्तर:

राजा विक्रमादित्य ने बहुत सोच-समझकर उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि तीसरे राजकुमार का योगदान सबसे महत्वपूर्ण था, क्योंकि वही वह व्यक्ति था जिसने अपनी मंत्रविद्या से मृत बहन को जीवित किया। हालांकि पहले और दूसरे राजकुमारों का योगदान भी महत्वपूर्ण था, लेकिन जीवन को वापस लाना ही सबसे बड़ा काम था, और इस कारण तीसरे राजकुमार को सबसे अधिक श्रेय मिलना चाहिए।

बेताल का रहस्योद्घाटन:
विक्रमादित्य का उत्तर सुनकर बेताल ने कहा कि राजा हमेशा की तरह सही थे, लेकिन अब वह उन्हें एक चेतावनी देगा। बेताल ने बताया कि जिस योगी के लिए विक्रमादित्य उसे पकड़कर ला रहे थे, वह वास्तव में एक छलावा कर रहा था। योगी का उद्देश्य विक्रमादित्य की बलि देकर अमरत्व प्राप्त करना था। बेताल ने राजा को सुझाव दिया कि जब वे योगी के पास पहुँचें और योगी बलि देने के लिए कहे, तो राजा योगी से उसकी इच्छा पूरी करने के लिए कहें और फिर तलवार से उसका वध कर दें।

अंत:
विक्रमादित्य ने बेताल की बात मानी। जब वह योगी के पास पहुँचे, तो योगी ने राजा से कहा कि वह बेताल को छोड़कर एक यज्ञ करे और राजा की बलि से उसे अमरत्व प्राप्त होगा। राजा ने छल को समझते हुए तुरंत योगी का वध कर दिया और बेताल ने इस वीरता के लिए विक्रम की प्रशंसा की। अंततः बेताल ने राजा विक्रमादित्य को आशीर्वाद दिया और कहा कि वह हमेशा उसके साथ रहेगा।

इस प्रकार, विक्रमादित्य ने अपनी बुद्धिमानी और वीरता से न केवल बेताल की कठिन कहानियों को सुलझाया, बल्कि योगी के धोखे को भी सफलतापूर्वक मात दी।