यह कहानी एक लाचार माँ और यमराज के बीच की है, जो न केवल मार्मिक है बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच के संघर्ष को भी दर्शाती है। एक गरीब महिला थी, जिसके पास केवल एक बेटा था। वह माँ अपने बेटे से बहुत प्यार करती थी और उसके लिए हर मुश्किल का सामना करती थी। उसका बेटा उसकी सारी दुनिया था। एक दिन, दुर्भाग्यवश, उसका बेटा बहुत बीमार हो गया और उसका जीवन खतरे में पड़ गया। माँ ने बहुत प्रयास किए, हर मंदिर, दरगाह, और चिकित्सक के पास गई, लेकिन उसका बेटा ठीक नहीं हो पाया।
अंत में, यमराज उसके बेटे की आत्मा लेने के लिए आए। माँ ने जब यमराज को देखा, तो वह गिड़गिड़ाते हुए उनके सामने खड़ी हो गई और उनसे विनती करने लगी, "हे यमराज! मेरे बेटे की जान मत लो। वह मेरे जीवन की एकमात्र उम्मीद है। अगर उसे कुछ हो गया, तो मैं जी नहीं पाऊँगी।
यमराज ने गंभीरता से कहा, "यह प्रकृति का नियम है, हर जीव का अंत निश्चित है। मैं इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।पर माँ हार मानने को तैयार नहीं थी। उसने यमराज से कहा, "अगर आप मेरे बेटे की जान ले जाएंगे, तो मुझे भी अपने साथ ले जाइए। मेरे बेटे के बिना मेरा जीवन व्यर्थ है।
यमराज ने देखा कि माँ का प्रेम कितना गहरा और निश्छल है। वे सोच में पड़ गए, क्योंकि ऐसा प्रेम उन्होंने कभी नहीं देखा था। उन्होंने भगवान से इस मामले में सलाह ली। भगवान ने कहा, "माँ का प्रेम सच्चा और निस्वार्थ होता है। अगर वह अपने बेटे के लिए अपने प्राणों की आहुति देने को तैयार है, तो उसे और उसके बेटे को एक और मौका देना चाहिए। यमराज ने माँ से कहा, "तुम्हारे बेटे की आयु अभी पूरी नहीं हुई है, भगवान ने तुम्हारी प्रार्थना सुन ली है। उसे जीवनदान मिल गया है
यह सुनकर माँ की आँखों में खुशी के आँसू आ गए और उसने अपने बेटे को गले लगा लिया। यमराज ने उस माँ के त्याग और प्रेम को सराहा और वहाँ से चले गए। इस कहानी से यह सीख मिलती है कि सच्चा प्रेम और माँ की ममता किसी भी शक्ति को बदल सकती है, चाहे वह मृत्यु ही क्यों न हो।
0 Comments
Post a Comment