लेकिन इस बार तो आतंकियों की गोलियों ने मजदूरों की पसीने पर वार कर दिया भला इन का क्या कसूर जो इन्हें गोलियों का इनाम भेंट किया गया. दूसरे राज्य में काम करने वाले जिले के 0 4 ला कामगारों को महीना महामारी, लॉगडाउन अभाव बेबसी ने तोर कर रख दिया उसमें से अधिकतर को सैंकड़ो हजार किलोमीटर सफर कर उन्हीं मूल्य स्थानों को लौटना पड़ा.
सात महीने के अंतराल में ही अब उनके लिए दोबारा पलायन जैसे हालात हैं. बिहार के इन प्रवासियों का हर से उदासीनता से समाना है. सरकारों से तो यह नाराज है ही भगवान से सवाल करते हैं कब खत्म होंगे इनके कष्ट बिहार में सत्ता के कैंपेने में उतने मायने हीं रखता हूं जितने की ओर फैक्टर मनरेगा भी नहीं रोक पा रहा है. पलायन अप्रैल में सरकार ने मनरेगा योजना को आगे बढ़ाने का फैसला किया पूरी बिहार में मनरेगा रोजगार ने राहत दी है लेकिन मनरेगा के रोजगार कम थी इस योजना के कमाई अपर्यात्प थी.
यही कारण है कि प्रवासी कामगारों ने मुंबई दिल्ली ,जम्मू-कश्मीर ,अमदा बाद व पंजाब जैसे बड़े शहर में वापस लौटने पर रहा है. अगर मजदूरों हार में मनरेगा की प्रति दिन की मजदूरों ₹190 हैं इसकी तुलना में हरियाणा में कुशल मजदूरों की दैनिक मजदूरों ₹350 हैं।
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